दिल कि किताब से चंद अल्फाज ढुंढता मै रह गया,
सुनाना था उसे कुछ, खुदसे ही बोलता रह गया
काश के लिखे हुए वो खत उसे भेज भी दिये होते
काश के धडकनो के कबुतर उसकी ओर छोड भी दिये होते
जाना था ही उसे जिंदगीसे पर सुनके तो गयी होती,
सूना था ही आंगण दिलका, पर आज ये बेचैनी तो ना होती
काश उस आखरी मुलाकात को तो हसीन बना पाता मै,
चंदनसी खुशबू उसकी दिल कि गहराई मे उतार पाता मै,
मेहेकती रहती फिर ये जिंदगी बस वही खुशबू बनके,
फिर वो रह जाती मुझमे हमेशा के लिये मेरी साँसे बनके
-आकाश